पर्यटन सुविधा केंद्र पर भी विवाद
देश का अंतिम गांव माणा टूरिस्टों में अच्छी खासी पैठ बना चुका है। सीजन के दौरान तो हर रोज इस गांव को देखने के लिये पर्यटकों का तांता सा लगा रहता है, लेकिन यहां विकास के लिए पर्यटन विभाग कितना मुस्तैद है, इसका पता उसकी कार्यशैली से चलता है।र वर्ष आने वाले पर्यटकों की तादात को देखते हुये सरकार ने वर्ष 2006 में पर्यटन सुविधा केन्द्र स्वीकृत किया जिसमें लॉज, रिसेप्शन, पुरूष व महिला प्रतीक्षालय के साथ ही शौचालय का निर्माण होना था। निर्माण कार्य के लिये 15 लाख 61 हजार रुपये की धनराशि भी स्वीकृत कर पर्यटन विभाग को दी गयी। पर्यटन विभाग ने गढ़वाल मंडल विकास निगम की इकाई को निर्माण कार्य का जिम्मा सौंपा और कार्य एक वर्ष के भीतर पूरा करने का आदेश दिये। उस वक्त पर्यटन मंत्री टीपीएस रावत ने 7 सितम्बर 2006 को माणा गांव में पहुंचकर पर्यटन सुविधा केन्द्र का शिलान्यास किया। तब पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों में आस थी कि पर्यटन सुविधा केन्द्र के बन जाने से यहा न केवल पर्यटकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया होंगी, बल्कि माणा गांव में विकास का एक नया आयाम भी स्थापित होगा। लेकिन आपसी सामंजस्य न बन पाने के कारण सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना पर ऐसा ग्रहण लगा कि पर्यटन सुविधा केन्द्र 5 वर्ष में भी बनकर तैयार नहीं हो पाया। निर्माण के नाम पर 7 लाख 62 हजार की धनराशि अब तक जरूर खर्च की जा चुकी है वो भी बिना किसी हिसाब किताब के। ऐसे हालातों में क्या और कितना विकास होगा इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है।