तबाही की वादियां
गौरीकुंड से केदारनाथ तक जाने का मार्ग इतना दुर्गम और खतरनाक हो गया है कि हल्की सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है। इस मंजर को देखने पर ऐसा लगता है कि इंसान प्रकृति के आगे कितना बौना है।
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गौरीकुंड से केदारनाथ तक जाने का मार्ग इतना दुर्गम और खतरनाक हो गया है कि हल्की सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है। इस मंजर को देखने पर ऐसा लगता है कि इंसान प्रकृति के आगे कितना बौना है।
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गौरीकुंड से केदारनाथ जाने के लिए अब प्रशासन की अनुमति जरूरी है। जगह-जगह चेतावनी बोर्ड लगे हैं।
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अफसर-नेता केदारनाथ पहुंचने के लिए इसी हैलीपैड के भरोसे हैं। जमीन से आना तो उनके लिए अब भी नामुमकिन बना हुआ है।
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रामबाड़ा में आज भी लाशें दबी हुई हैं। जो दिख जाती हैं, उन्हें प्रशासन वहीं जला देता है। यह तस्वीर त्रासदी के बाद की त्रासदी की गवाही है।
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केदारनाथ त्रासदी का सबसे ज्यादा असर रामबाड़ा पर हुआ। मौत का आंकड़ा भी यहीं सबसे ज्यादा रहा। एक साल बाद भी यहां दबे शव निकल रहे हैं। हाल ही हुए ऐसे ही कुछ अंतिम संस्कार।
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यह इलाका इतना दुर्गम है कि हैवी मशीनरी ला पाना मुश्किल है इसलिए छोटे क्वैड ट्रक ही काम में लिए जा रहे हैं।
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केदारनाथ मंदिर के आसपास धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और लॉज सब तबाह हो चुके लेकिन मलबा एक साल बाद भी तबाही की दास्तां बता रहा है।
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केदारनाथ मंदिर से तकरीबन 500 मीटर पहले नदी के ऊपर हाथ से बना एक लकड़ी का छोटा पुल। इसी को पार कर आप केदारनाथ मंदिर पहुंच पाएंगे।
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केदारनाथ मंदिर से तकरीबन 500 मीटर पहले नदी के ऊपर हाथ से बना एक लकड़ी का छोटा पुल। इसी को पार कर आप केदारनाथ मंदिर पहुंच पाएंगे।
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