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भूटानः सुख छिनने लगा है धरती के स्वर्ग का

bhutan_2847_600x450भूटान के प्राकृतिक सौंदर्य और पहाड़ों ने इसे दुनिया की सबसे चाही जाने वाली जगह बना दिया है। ऐसे वक्त में, जब हर कोई धरती के इस स्वर्ग में जाने की इच्छा रखता हो, क्या यह स्वर्ग रह पाएगा?

कहते हैं कि पैसा सब कुछ खरीद सकता है, बस खुशी नहीं। भूटान ने भी इस बात को समझा और देश को चलाने का एक नया तरीका तय किया। लेकिन वक्त के साथ साथ यह देश सुख से दूर होता नजर आ रहा है। हिमालय की वादियों में बसा छोटा सा भूटान अपनी अर्थव्यवस्था को राष्ट्र के उत्पाद के अनुसार नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुख के अनुसार नापता है। लेकिन भूटान के प्रधानमंत्री का कहना है कि देश अपनी ही दी हुई सीख को भूलता जा रहा है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मी थिनले ने कहा, ‘धन से उसके और होने की चाह बढ़ जाती है। ऐसे भी परिवार हैं जिनके पास चार या पांच गाड़ियां हैं। लग्जरी गाड़ियों का आयात किया जा रहा है जो हमारी सड़कों पर चल भी नहीं सकती और जो बेहतरीन सड़कों के लिए बनी हैं।’

1974 तक भूटान ने खुद को बाकी की दुनिया से काट रखा था। विदेशियों को भूटान में आने की इजाजत नहीं थी। हाल के सालों में हालात बदले हैं। लेकिन भूमंडलीकरण का असर कुछ ऐसा हो रहा है कि भूटान अपनी पहचान खोने लगा है। सरकार इस पर लगाम कसने की कोशिश कर रही है। विदेशी गाड़ियों पर टैक्स बढ़ाने पर विचार चल रहा है।

सकल राष्ट्रीय सुख : भूटान के लिए सबसे ज्यादा दुख की बात यह है कि सकल राष्ट्रीय सुख (जीएनएच) गिरता जा रहा है। 2010 में केवल 41 प्रतिशत लोगों ने ही खुद को ‘सुखी’ बताया। देश में बेरोजगारी दर नौ प्रतिशत से अधिक हो गई है। लोग गांव छोड़ कर नौकरियों की तलाश में शहरों का रुख कर रहे हैं।

थिनले लोगों की बदलती सोच के बारे में कहते हैं, ‘हम जीएनएच के आदर्शों से दूर होते जा रहे हैं और कई अन्य देशों की तरह भौतिकवादी होते जा रहे हैं। अगर ऐसे रूझानों के कारण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ने लगे जैसा कि नुकसान हमें उठाना पड़ रहा है, तो सरकार के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी हो जाता है।’
थिनले की सरकार ने 2008 में चुनाव जीता जिसके बाद देश में पहली बार लोकतंत्र की स्थापना हुई। अगले साल देश में फिर चुनाव होने हैं। देश में जीएनएच यानी सकल राष्ट्रीय सुख को नौ पैमानों पर तय किया गया है। इसमें मनोवैज्ञानिक, पारिस्थितिकी, स्वास्थ्य, शैक्षिक, सांस्कृतिक, जीवन स्तर, समय का उपयोग, सामाजिक महत्व और एक अच्छी शासन प्रणाली शामिल हैं।

थिनले का मानना है कि जब तक भूटान ने दुनिया के लिए अपने दरवाजे नहीं खोले थे लोगों का जीवन ज्यादा सुखी था। ‘हमारे आर्थिक संकट का कारण यह है कि हम दुनिया से जुड़ गए हैं और ग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया का हिस्सा बन गए हैं।’
बेहतर हैं गांव : भूटान दुनिया के सबसे गरीब देशों में गिना जाता है। देश की सात लाख की आबादी का 70 फीसदी हिस्सा खेती बाड़ी पर निर्भर करता है। गरीबी के बावजूद देश में लोगों को संतुष्ट माना जाता रहा है, लेकिन बदलते हालात में जहां लोग खुद की अन्य देशों से तुलना करने लगे हैं वहां संतुष्टि का दर गिरा है।
पिछले साल देश में 65 हजार गाड़ियां खरीदी गई। इन में हर आठ में से एक गाड़ी विदेश से आयात की गई। भूटान में अधिकतर आयात भारत से किया जाता है। थिनले का कहना है कि इन गाड़ियों के लिए तेल की भी जरूरत है जिसके लिए भारत पर निर्भर करना पड़ता है और जिसे खरीदने में भूटान की कुल आय व्यर्थ हो जाती है।

गुरुवार को संसद में आर्थिक विकास को सात से आठ प्रतिशत तक बढ़ाने पर चर्चा हुई। साथ ही गरीबी को 23 से 15 प्रतिशत पर लाने की भी बात की गई। देश के 77वें हिस्से में बिजली है।

ऐसे में थिनले की लोगों से गुजारिश है कि वे खेती बाड़ी में रह कर ही संतुष्ट रहें और बेहतर जीवन की तलाश में शहरों का रुख ना करें, ‘कई मायनों में गांव देहात में जीवन बेहतर है और वहां खुशी ढूंढने के मौके शहर की तुलना में बहुत अधिक हैं, जहां आप अपने पड़ोसी को भी नहीं पहचानते और जहां हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं।’

थिनले कहते हैं कि सरकार को लोगों में गांव में रहने की चाह को बरकरार रखना होगा और कोशिश करनी होगी कि वे शहर छोड़ फिर से गांव की तरफ जाएं, ‘तंग कमरों में जीने की जगह खेतों में जाइए।’ उनका लोगों से यह निवेदन है कि वे दूसरे देशों के संसाधनों पर निर्भर करने की जगह स्वतंत्र बनें और खेती का पूरा लाभ उठाएं।

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