हिमाचल की चंद्रताल झील पर प्रदूषण की मार
कुल्लू (चंद्रताल) प्राकृतिक नजारे के लिए मशहूर लाहौल-स्पीति जिले की चंद्रताल झील प्रदूषण की मार से अछूती नहीं रही। कभी झील के नीले पानी में पहाड़ अपनी छवि से बात करते थे, आज मटमैला पानी इस दर्पण को खराब कर है। लाहौल-स्पीति के बातल से 14.5 किमी दूर स्थित चंद्रताल झील में सबसे पहले 1989 में विदेशी पर्यटक ने दस्तक दी। उसके बाद झील के अप्रीतम सौंदर्य से आकर्षित होकर वहां देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद बढ़ने लगी।
पर्यटकों के आते ही झील व इसके आसपास पानी की बोतलें, घोड़े की लीद, पॉलीथीन आदि कचरा पहुंच गया। इससे झील प्रदूषित हो गई। हालत यह है कि 4290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 4900 हेक्टेयर में फैली चंद्रताल झील का कभी नीला दिखने वाला पानी गंदा हो गया है। झील के निकट टेंटों में पर्यटक ठहरते हैं जो वहां से जाने के बाद गंदगी वहीं छोड़ जाते हैं। इससे चंद्रताल की सुंदरता को ग्रहण लग गया है।
नेचर इंडिया ने की पहल वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया नामक संस्था ने तीन हजार मीटर से ऊंची झीलों में प्रदूषण समाप्त करने का बीड़ा उठाया है। इनमें चंद्रताल व मणिमहेश झील शामिल है। संस्था ने चंद्रताल में कूड़े कचरे व प्लास्टिक की बोतलों को डालने के लिए किल्टों (पीठ पर रखी जाने वाली टोकरी) का इस्तेमाल किया है।
संस्था के साथ ही वन विभाग ने भी वहां चौकीदार तैनात किया है ताकि झील को प्रदूषित होने से बचाया जा सके। झील तक बनी सड़क पर अब गाडि़यों के ले जाने पर भी पांबदी है ताकि प्रदूषण न फैले। संस्था ने जागरूकता के लिए बोर्ड भी लगाए हैं।