रोहतांग दर्रा: खतरनाक खूबसूरती
13 हजार फुट की ऊचाई पर स्थित रोहतांग दर्रा टूरिस्टों का हॉट स्पॉट है। मनाली केलांग हाइवे पर प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर बर्फीली वादियों में खड़े देवदार के पेड़ हर किसी का मन मोह लेते हैं। व्यास और चंदा जैसी नदियां दिल खुश कर देती हैं। लेकिन यह खूबसूरती अचानक ही तब मुसीबत लगने लगती है, जब बर्फीले तूफान चलने लगते हैं, चट्टानें टूटकर गिरने लगती हैं, रास्ते बंद हो जाते हैं। रोहतांग को फारसी में मुर्दों का ढेर भी कहा जाता है, जो कभी-कभी सच लगने लगता है।
बर्फीली आफत
इस रास्ते पर हिमस्खलन वाली 44 कुख्यात जगहें हैं। पीर पंजाल रेंज को एक-दूसरे से जोड़ने वाला यह रास्ता साल में सिर्फ 4-5 महीने ही खुला रहता है। बाकी दिनों लाहौल स्पीति घाटी बाकी देश से कटी रहती है। लेकिन सड़क सीमा संगठन (बीआरओ) ने 2015 तक यहां सुरंग बनाने का जिम्मा लिया है। इसके लिए रोहतांग पास पर 18 हिमस्खलन मॉनिटरिंग सेंटर बनाएं हैं, जहां डीआरडीओ के स्नो एंड ऐवलांश स्टडी इस्टैब्लिशमेंट (एसएएसई) ने हिमस्खलन रोकने के स्ट्रक्चर तैयार किए हैं। इसके वैज्ञानिक हिमस्खलन का पूर्वानुमान लगाने और उन्हें कंट्रोल करने में माहिर हैं।
सामरिक महत्व
1495 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली यह सुरंग सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण होगी। यह लेह लद्दाख और जम्मू-कश्मीर की अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाएगी। रोहतांग टनल बनने के बाद 15920 फुट ऊंचे शिंऊथला दर्रे के नीचे चार किमी लंबी सुरंग बनेगी। इसके बाद मनाली-लेह रोड से चार बड़े दर्रे बारालाचा, थांगलग, नकीला और लाचुंग भी जुड़ जाएंगे। इससे लेह लद्दाख और जम्मू-कश्मीर बॉर्डर पर तैनात सेना को साल भर सामरिक साजोसामान बिना बाधा के और जल्दी सप्लाई किया जा सकेगा।