प्रोजेक्टों की भेंट चढ़े ठंडे जायरू
एजेंसी. कुल्लू। हाइडल॒ प्रोजेक्टों के हब के रूप में तेजी से पहचान बनाती जा रही कुल्लू घाटी में विद्युत क्रांति के मिले जुले॒ प्रभाव देखने को मिले हैं। विकट भौगोलिक स्थिति वाले इस इलाके में बिजली परियोजनाओं के अस्तित्व में आने से विकास ने एकाएक रफ्तार पकड़ ली है। लेकिन, प्रोजेक्टों में भारी मात्रा में खनन होने से पर्वतों के गर्भ से फूटने वाले प्राकृतिक जल स्रोत (जायरू) तबाह हो जाने से गंभीर पेयजल संकट खड़ा हो गया है।
जल विद्युत परियोजनाओं में अंधाधुंध खनन से इलाके के पेयजल स्रोत सूखकर बर्बाद होने से ग्रामीण पेयजल के लिए॒ त्राहिमाम कर उठे हैं। गरमी शुरू होते ही हाइडल॒ प्रोजेक्ट प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल संकट एकाएक गहरा गया है। विद्युत कंपनियों ने नई पेयजल योजनाओं के लिए झोली तो खोली जरूर, लेकिन काफी विलंब से। लिहाजा, इन गर्मियों में भी पेयजल संकट से लोगों को राहत मिलती नजर नहीं आ रही है।
पार्वती चरण दो और तीन का निर्माण करने के लिए॒प्रोजेक्ट साइटों पर भारी मात्रा में खनन करना पड़ा है, जिससे सैंज, रैला, सियुंड, लारजी, रोपा समेत कई गांवों में प्राकृतिक पेयजल स्रोत तबाह हो गए। सैंज, मलाणा॒और एलाइन॒ दुहांगन॒ प्रोजेक्टों के निर्माण कार्य से भी कमोबेश यही हालात देखने को मिल रहे हैं।
उधर, बड़ाग्रां॒क्षेत्र में २६ मेगावाट के एक प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू होने जा रहा है। वहां पर भी ब्लास्टिंग॒ करते हुए॒ भारी मात्रा में खनन किया जाना है। इससे क्षेत्र के प्राकृतिक पेयजल स्रोतों पर भी खतरा मंडराना शुरू हो गया है।