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एक था उत्तराखंड क्रांति दल!

UKDपिछले दिनों उक्रांद के अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार ने जब सरकार से समर्थन वापस लेने की धोषणा की तो प्रदेश की राजनीति में कोई हलचल पैदा नहीं हुई। कमोवेश उक्रांद और इसके फैसलों को अब कोई गंम्भीरता से नहीं लेता ।लेकिन उक्रांद की विडंबना रही है कि तीस सालों में अपना कोई कैडर खड़ा नहीं कर पाया । यह पार्टी हमेशा कुछ लोगों कि हाथ की कटपुतली रहीं है। वो जो फैसला कर लें उसे पार्टी का फैसला मान लिया गया। एसा नहीं है कि पार्टी कार्याकरता इसाका पिरोध नहीं करते, बात अगर भाजपा के साथ सत्ता में शामिल होने की करे तो कार्याकर्ताओं ने हमेशा इसका विरोध किया। पार्टी के कई पुराने लोगों ने इस निर्णय के खिलाफ पार्टी भी छोड़ी जिसका नतीजा है कि उक्रांद का एक बड़ा धडा अब मौजूदा पार्टी संगठन के साथ नहीं है। जिसकी कीमत पार्टी को समय समय पर चुकानी पड़ी है। इस क्षेत्रीय दल का टूटना और बिखरना कोई नयी बात नहीं है। राजनीति में कई तरह के उतार चढ़ाव आते रहें है।लेकिन विचारधारा वाली पार्टियां उसपर विचार मंथन कर नया रास्ता निकालती है। दुर्भाग्य से उत्तराखण्उ की तमाम आकांक्षों को जगाने वाले इस दल ने कभी अपना मूल्यांकन नहीं किया । पिछले दिनों जब सरकार से समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल को सौपा गया तो उससे उत्तराखण्ड के वो सवाल नहीं थे जिन्हें लेकर समर्थन या विरोध की राजनीति की जा सकती है। पार्टी अध्यक्ष ने सर्मथन वापसी के जो कारण गिनाये हैं वो किसी के गले नहीं उतर रहें है। सर्मथन देते वक्त इसी तरह के हल्के तर्क दिए गए थे ।पार्टी जिन नौ बिंदुओं को समर्थन का आधार मानती है वे इतने छोटे है कि इनसे किसी सरकार को समर्थन देने या न देने की राजनीति तय नहीं की जा सकती। आज से चार साल पहले उक्रांद ने अपने कार्यकर्ताओं से पूछे बिना देहरादून में बैठ कर भाजपा सरकार को समर्थन देने का फैसला लिया था। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश नजर आया। मौजूद अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार भी लगातार इस समर्थन का विरोध करते रहे। हालांकि इनका विरोध पार्टी मुद्दो पर कम दिवाकर भट्ट उनकी व्यक्तिगत खुन्नस ज्यादा थी। उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष बीडी रतूडी ने समर्थन का जो रास्ता निकाला वह पार्टी की गैर राजनीति की समझ का परिचय था। विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले ही रतूडी ने घोषणा कर दी थी कि भाजपा या कांग्रेस जिसे भी हमारी जरूरत होगी उसे समर्थन देंगे। उनके पास तब भी पहाड़ के सवालों से उनका कोई सरोकार नहीं था। एक तरह से यह बात तय थी कि सत्ता सुख भोगने के लिए पार्टी का ये चाणक्य कुछ भी करने को आतुर था। हुआ भी यहीयूकेडी ने सरकार में बैठने के लिए खुद भाजपा को अपने समर्थन की चट्ठी सौंप दी। इससे ये बात भी समने आती है कि सत्ता सुख भोगने के लिए प्रदेश का ये क्षेत्रीय दल कितना लालायित था। जिन नौ बिंदुओं को लेकर दल ने समर्थन दिया गया था, इन नौ बिंदुओं को सरकार में न रहकर भी बखूबी पूरा किया जा सकता था। रही सही कोरकसर अब दागदार दिवाकर ने पूरी कर दी। वहीं भाजपा ने यूकेडी को उनकी हैसियत बताते हुए अपने तय कार्यक्रम के अनुसार दिवाकर भट्ट को कैबिनेट मंत्री, बीडी रतूड़ी को लाल बत्ती देकर पार्टी को अपने चंगुल में ले लिया। यूकेडी के शीर्ष नेता और कभी मुख्यमंत्री पद के लिए प्रचारित काशी सिंह ऐरी को तीसरे दर्जे का हिलट्रान का अध्यक्ष पद सौंपा। इससे जहां एक ओर उक्रांद के अंदर अन्य दलों की तरह ठेकेदारों और सत्ता के गलियारों में घूमने वालों की एक नई किस्म की पौध तैयार हो गयी। सत्ता सुख की लालसा और ताकतवर बनती रही। गाड़ी बंगलों में घूमते नेता और अपनी पार्टी में उपेक्षा के शिकार दूसरे नेताओं की गुटबाजी बढ़ती गई। बिडंबना देखिए कि एक बार फिर उत्तराखंड क्रांति दल हाशिये पर चला गया है। कमोबेश राजनीति में स्थिति बनती और बिगड़ती कैसे है, ये बात उक्रांद के फील्डमार्श कहे जाने वाले दिवाकर भट्ट के कोर्टमार्शल होने से साफ होती है। केंद्रीय अध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार ने महज तीन दिन के नोटिस पर खांटी पहाड़ी दिवाकर भट्ट को चारों खाने चित कर दिया। लेकिन फील्डमार्शल है कि सत्ता का शहद चाटना चाहते हैं। वहीं अगर धूल से सने यूकेडी के इतिहास के पन्नों का पलटे तो इन पन्नों में फील्डमार्शल कहे जाने वाले दिवाकर भट्ट किसी आक्रांता से कम नहीं। पार्टी को तोड़ने, मरोड़ने और अपंग बनाने का काम ज्यादा किया है। यूकेडी के इस बुजुर्ग बाजीगर का रिकार्ड कुछ ऐसा है। सबसे पहले उत्तराखंड आंदोलन के दौरान संगठन 1996 में टूटा। उस समय भी दिवाकर भट्ट ने संगठन को कमतर आंकते हुए खुद को पार्टी का खुदा समझा और दल से अलग हो गये। समय के साथ पार्टी का कदमताल देख 1999 में दिवाकर फिर यूकेडी में शामिल हुए, और आपसी मतभेदों को दूर कर पार्टी का फिर एकीकरण हुआ। 2000 में राज्य का गठन हुआ। चार विधायकों के साथ प्रदेश की पहली भाजपानीत सराकर में यूकेडी भी भागीदार बनी। सत्ता की मलाई चाटने के बाद 2003 में यूकेडी फिर बिखर गई। अफसोस कि तब भी बिखराव के कर्ताधर्ता दल के फिल्डमार्शल दिवाकर भट्ट थे। पार्टी ने फिर से दिवाकर भट्ट को बाहर का रास्त दिखाया। उस समय उक्रांद को क्षेत्रीय दल की मान्यता मिली थी और इस टूटन के बाद दल की मान्यता पर भी खतरा मंडराया लेकिन दल अपनी मान्यता बचाने में सफल रहा। दो साल बाद पार्टी की मजबूत स्थिति को देखते हुए मौजूदा काबीना मंत्री दिवाकर भट्ट यूकेडी में शामिल हो गये। कमोबेश अपने जन्म से ही टूटने, जुड़ने और विखरने का दंश झेल रही यूकेडी एक बार फिर विखराव के कगार है इस बार भी दिवाकर भट्ट बिखराव के कर्ताधर्ता है। लेकिन इस बार पार्टी उन्हें बकासने के मूड़ में नहीं है। पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार के कठोर निर्णय के बाद आखिरकार इस फिल्डमार्शल का कोर्टमार्शल करते हुए पार्टी से आजीवन निष्कासन कर दिया है। ऐसे में खैट पर्वत की ऊंचाई तक चढ़ चुका बुजुर्ग दिवाकर भट्ट का राजनीतिक करियर डगमाने लगा है। लेकिन दल द्वारा दिये गये जख्मों को सहलते हुए दिवाकर भट्ट ने जख्मी शेर की तहर संगठन पर ही हमला कर दिया। पार्टी से निष्कासित दिवाकर ने सत्ता की ठसक में दल के फैसलों को ठेंगा दिखाते हुए खुद को पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया। राजधानी के एक वैडिंग प्वांट में चले इस राजनीतिक ड्रामे में दिवाकर के खासमखास बीडी रतूडी ने भी महाधिवेशन में शिरकत कर दिवाकर के नई जिम्मेदार पर अपना ठप्पा लगाया। इस नई जिम्मेदारी को संभालते हुए सबसे पहले दिवाकर ने मौजूदा केंद्रीय अध्यक्ष त्रिवेद्र पंवार को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित करते हुए चौदह प्रस्ताव पारित किये। यूकेडी में मची अहम की लड़ाई से भले ही किसी को नुकसान हो न हो लेकिन पार्टी को अहम की लड़ाई ने ठीक चौदह साल पहल की दहलीज पर पहुंचा दिया है। दल दो फाड़ हो चुका है, और कौन असली कौन नकली का खेल जारी है। कुर्सी किसके हाथ लगती है ये अब निर्वासन आयोग की अदालत को फैसला करना है तब तक यूकेडी में राजनीतिक ड्रामा मनोरंजन चैनल पर चलने वाले धारावाहिकों की तरह चलता रहेगा।

वहीं दिवाकर भट्ट द्वारा बुलाये गये विशेष महाधिवेशन को यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने असंवैधानिक करार दिया। उन्होने कहा कि पार्टी से निष्कासित सदस्यों द्वारा की गई किसी भी गतिविधि को संवैधानिक नहीं बताया जा सकता। साथ ही उन्होने कहा कि ये सारा काम भा कर रही है और इस महाधिवेशन में भाजपा के लोग शामिल हुए थे न कि यूकेडी के। वहीं उन्होेने इसे भाजपा की बी टीम करार दिया।
उधर दिवाकर भट्ट का कहना है कि वो विधायक दल के नेता है और उन्होंने नेता विधायक दल के हैसियत से सरकार को समर्थन दिया है। इसलिए सरकार से यूकेडी ने समर्थन वापस नहीं लिया है और पार्टी का सरकार को समर्थन जारी है। साथ ही उन्होने कहा कि उनके साथ दोनों विधायक हैं। वहीं पार्टी से निष्कासित किये जाने पर उन्होने कहा कि ये सब असंवैधानिक है और वो पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक है।

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