साजिश के शिकार होते तेंदुए!
देवों की भूमि उत्तराखंड में पिछले दस सालों से एक भयानक साजिश चल रही है। इस साजिश के शिकार जंगल के जानवर हो रहे हैं। इस साजिश का सबसे बड़ा शिकार तेंदुआ है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल उत्तराखंड अब तक 51 तेंदुओं की मौत हो चुकी है। वन विभाग की मानें तो इनमें से सिर्फ 7 तेंदुए ही शिकारियों के हत्थे चढ़े जबकि बाकि की मौत दुर्घटना या प्राकृतिक रूप से हुई। अब खुद जंगल विभाग के रिकार्ड में तेंदुओं की 25 खालें बरामद होने की बात है तो सिर्फ सात तेंदुए ही शिकारियों के हाथ कैसे मारे गए। जाहिर है असली संख्या वो नहीं जो वन विभाग की फाइलों में है।
पिछले दस सालों में उतराखंड में 86 तेंदुओं को आदमखोर घोषित किया गया। इनमें से 70 तेंदुओं को वन विभाग ने मार गिराए और 16 की तलाश अभी भी जारी है। ऐसे में सवाल ये है कि इंसानों से दोस्ती के लिए जाना जाने वाला तेंदुआ अचानक आदमखोर कैसे होने लगा वो भी इतनी बड़ी संख्या में। साफ है कि इसके पीछे कोई ना कोई राज जरूर है।
जंगल में तेंदुओं को ना तो रहने की जगह बची है ना खाने का आहार। तेंदुए आबादी की तरफ भाग रहे हैं और इंसानो को अपना आहार इंसान बना रहे हैं। तेंदुए के बीच छिड़ी इसी जंग का फायदा शिकारी उठा रहे हैं और तेंदुए मारे जा रहे हैं ।
जहर देकर मारते हैं तेंदुआ
वन विभाग की मानें तो सिर्फ उसी तेंदुए को आदमखोर घोषित किया जाता है जिसने हमला करने के बाद इंसानी शरीर का कोई हिस्सा खा लिया हो। आदमखोर घोषित होने के वाले तेंदुए को एक महीने के अंदर मारना या काबू करना होता है। एक महीने के बाद आदमखोर घोषित करने की प्रक्रिया को दोहराना पड़ता है। सरकार की इसी कमी का लाभ वन्य जीवों के तस्कर उठाते हैं ।
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के अलावा देश भर में तेंदुए के अंगों की मांग तेजी से बढ़ी है। वन विभाग इसकी वजह तंत्र मंत्र को मानता है क्योंकि तेंदुए के नाखून और खाल की मांग तंत्र मंत्र करने वाले लोगों के बीच ज्यादा है। तस्कर माफिय़ाओं ने तेंदुए का शिकार करने के लिए बकायदा जंगल के करीब बसे गांवो में अपने एजेंट बना रखे हैं। ये एजेंट इसी फिराक में रहते हैं कि कब कोई तेंदुआ गांव की तरफ आए। कई बार ये लोग पांवों या पंजों के फर्जी निशान भी बनाते हैं जिससे तेंदुए के आतंक को प्रचारित कर सकें।
तेंदुए को आदमखोर बताने की साजिश के अलावा शिकारी माफिया जो दूसरा सबसे बड़ा साधन अपनाते हैं वो है जहर। शिकारियों के लिए जहर वो साधन बन गया है जिसमें ना तो गोली की जरूरत पड़ती है ना ही शोर शराबे की। टारगेट किए गए जानवर को जहर पिलाने में शिकारियों को महारत हासिल है।
उतराखंड में पिछले दस सालों के दौरान 158 तेंदुए दुर्घटना के शिकार हुए। इनमें से ज्यादातर तेंदुए जहर पीने की वजह से मरे हैं। जबकि कानून की कमजोरी का लाभ भी वन्य जीव तस्करों को ही मिलता है।