हिमाचल में तेजी से घटते जा रहे हैं वन
एजेंसी. शिमला। हरी-भरी वादियों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश के वन घटते जा रहे हैं। वनों के घटने के साथ-साथ प्रदेश के जल संसाधनों में कमी आ रही है और यहां का पर्यावरण तेजी से बदल रहा है। इन सभी बातों ने पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है।
किन्नौर जिले में लगाई जाने वाली जलविद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रही संस्था हिम लोक जागृति मंच (एचएलजेएम) के मुताबिक देश का यह छोटा सा राज्य जैव विविधता का भंडार रहा है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। नई परियोजनाओं के लिए हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं और हजारों को काटा जाना है। इन परियोजनाओं के माध्यम से राज्य की नदियों की स्वच्छंदता को रोकने की योजना है। बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य के कारण जल के पारंपरिक स्रोत पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। यही सब चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब यह राज्य कंक्रीट का जंगल बनकर रह जाएगा।
किन्नौर जिले में 1000 मेगावॉट का कार्चम-वांगटू हाइड्रो प्रोजेक्ट, 100 मेगावॉट के टिडोंग प्रोजेक्ट, 195 मेगावॉट केशांग प्रोजेक्ट, 402 मेगावॉट शूनटांग-कार्चम प्रोजेक्ट और 100 मेगावॉट शोरांग प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इन परियोजनाओं के माध्यम से सतलुज और उसकी सहायक नदियों को बांधने की तैयारी है। वहीं रेणुका बांध जन संघर्ष समिति के सचिव ने कहा कि सरकार को रेणुका परियोजना को बंद कर देना चाहिए।
सिरमौर जिले में भी निर्माणाधीन एक परियोजना का लोग बढ़ – चढ़कर विरोध कर रहे हैं। अकेले रेणुका बांध के लिए 1.77 लाख पेड़ों को काटा जाना है और केंद्र सरकार ने पिछले साल इसके लिए पर्यावरण संबंधी योजना को निरस्त कर दिया था। राज्य में पर्यावरण के संरक्षण से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण संतुलन के लिए कुछ क्षेत्रों को ‘ संरक्षित ‘ घोषित कर देना चाहिए।