जरूरी हैं शेरपा
शेरपा की मदद के बिना पर्वतारोहियों का बेस कैंप से बाहर निकलना और एवरेस्ट पर चढ़ना मुमकिन नहीं. शेरपा रास्ते की खोज करते हैं, उसे सीढ़ियों और रस्सियों से सुरक्षित भी करते हैं.
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शेरपा की मदद के बिना पर्वतारोहियों का बेस कैंप से बाहर निकलना और एवरेस्ट पर चढ़ना मुमकिन नहीं. शेरपा रास्ते की खोज करते हैं, उसे सीढ़ियों और रस्सियों से सुरक्षित भी करते हैं.
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प. बंगाल का दार्जिलिंग चाय के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। दार्जिलिंग की यह बाला टी-एस्टेट में चाय चुनती है। यहां बड़ी-बड़ी चाय कंपनियों के एस्टेट हैं व स्थानीय लड़कियां छोटी उम्र से ही इनमें काम करने लगती हैं। सौजन्यः गुरमीत ठुकराल (हिमालयन इमेजेस)
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राज्य सरकार ने तीन दिनों तक लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया था। सेना न होती तो जाने क्या होता। जान जोखिम में डालकर बचाई हजारों जिंदगी।
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अपनी भेड़ की ऊन उतारता गद्दी आदिवासी। गद्दी हिमाचल प्रदेश के अर्ध-घुमंतू चरवाहे हैं जो गर्मियों में हिमालय के ऊपरी इलाकों में जबकि सर्दियों में कांगड़ा व चंबा की घाटियों में उतर आते हैं। ये शिव के उपासक हैं। इनके स्थाई निवास चंबा और कुल्लू की घाटियों के बीच हैं।…
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पहाड़ की चट्टानी जीवनशैली बच्चों को सीने से लगाकर उठाने से भी रोकती है। यहां बच्चों को पीठ से बांधा जाता है। पहाड़ तो खूबसूरत हैं ही, यहां के लोग भी खूबसूरत और जीवट से भरपूर हैं। सौजन्यः गुरमीत ठुकराल (हिमालयन इमेजेस)
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विहंगम दृश्य केदारनाथ गांव का है। मंदिर एक ग्लेशियर के किनारे बनाया गया था। यहां शिव के त्रिकोणीय चट्टान वाले स्वरूप का स्थान है। सौजन्यः गुरमीत ठुकराल (हिमालयन इमेजेस)
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दशहरा हिमाचल की कुल्लू घाटी का प्रमुख त्योहार है। इस दौरान स्थानीय गांवों के लोग एक जगह एकत्र होते हैं। पूरी घाटी उस दौरान रंगीन दिखाई देती है। सौजन्यः गुरमीत ठुकराल (हिमालयन इमेजेस)
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माउंट एवरेस्ट पर जाना हर पर्वतारोही का सपना होता है। हर साल सैकड़ों पर्वतारोही इसे फतेह करने की चाह लिए आते हैं। लेकिन कुछ ही ऐसा कर पाते हैं। दुनिया की सबसे ऊंची इस चोटी की ऊंचाई 8,848 मीटर है। पीक-15 के नाम से जाना जाता था। लेकिन ब्रितानी राज…
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एवरेस्ट फतेह करने से पहले पर्वतारोही बेस कैंप के अलावा चार पड़ाव और डालते हैं।
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नेपाल के शेरपा दुनिया के सबसे रफ एंड टफ लोगों में से एक हैं। पर्वतारोहियों को रास्ता दिखाने, बचाने और उनका सामान ढोने में शेरपाओं का कोई सानी नहीं है। वे पीढ़ियों से इस काम में लगे हैं। इन्हीं की बदौलत दुनियाभर के लोग एवरेस्ट फतेह कर पाते हैं।
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