त्रासदी के बाद केदारनाथ मंदिर
बर्फबारी अभी भी हो रही है। मंदिर बर्फ से घिरा हुआ है। त्रासदी में मंदिर के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था जो अब भी बरकरार है।
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बर्फबारी अभी भी हो रही है। मंदिर बर्फ से घिरा हुआ है। त्रासदी में मंदिर के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था जो अब भी बरकरार है।
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हनुमान चट्टी के पास दुर्घटनाग्रस्त हुआ हैलीकॉप्टर अब भी वैसे ही पड़ा है। त्रासदी के बाद चलाए गए रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
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बर्फबारी अभी भी हो रही है। मंदिर बर्फ से घिरा हुआ है। त्रासदी में मंदिर के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था जो अब भी बरकरार है।
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केदारनाथ के मंदिर के पीछे बहकर आए बोल्डर (चट्टान) को अब दिव्य शिला मानकर पूजा जा रहा है। पुजारियों का कहना है कि इसी शिला के कारण मंदिर टूटने से बचा क्योंकि पहाड़ से आया मलबा इस चट्टान से कटकर इधर-उधर चला गया।
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बर्फ जमी होने के कारण तबाही के निशान अब भी ज्यों के त्यों हैं। नया सीजन शुरू होने के कारण रास्ता बनाने की कवायद लगातार जारी है। क्योंकि अब भी बर्फबारी हो रही है।
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केंदारनाथ मंदिर की चौखट में दरारें आ गई हैं। दायीं तरफ का हिस्सा इस तरह दरक गया है कि उसे अस्थाई तौर पर पत्थर लगाकर रोका गया है। मरम्मत के लिए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की मदद ली जा रही है।
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मई के महीने में भी यहां बर्फबारी हो रही है। बर्फ को काटकर ही यदि आप रास्ता बना सके तो ही पहुंच पाएंगे।
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केदारनाथ मंदिर के चारों ओर बने मकानों में अभी भी शव दबे हैं। चूंकि इस ऊंचाई पर मलबे को हटा पाने के लिए हैवी मशीनरी चाहिए जो अभी तक संभव नहीं हो पाया है। जीएसआई ने भी कहा है कि फिलहाल मलबे को न हटाया जाए।
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गौरीकुंड में वक्त ठहरा हुआ है। 15-16 जून, 2013 को आई जल आपदा में पूरा गौरीकुंड तबाह हो गया। लगभग एक साल बाद भी यात्रियों की गाड़ियां वहीं पड़ी हैं जहां वे फंसी रह गई थीं। यह जगह गौरीकुंड में बड़ी पार्किंग के नाम से जानी जाती है।
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असम सिर्फ एक प्रदेश का नाम नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विभिन्न संस्कृतियों इत्यादि की झलक का प्रतीक है। असम की ढेर सारी संस्कृतियों में से बिहू एक ऐसी परंपरा है जो यहां का गौरव है। असम में मनाए जाने वाले बिहू मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं... बैसाख बिहू -…
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