कहां गई चहचहाहट
एक अध्ययन के मुताबिक आधुनिक बिल्डिंग, पेस्टीसाड्स और मोबाइल टावर हैं चिड़िया की घटी तादाद के जिम्मेदार
परिंदों पर रिसर्च के लिए मशहूर बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के सिटीजन स्पेरो प्रोजेक्ट में चिड़ियों पर किए गए नए शोध ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि देशभर में इनकी संख्या लगातार गिर रही है। 2005 से अब तक उनकी संख्या 50 फीसदी तक कम हो गई है। पहले चिड़िया कहीं भी दिखाई दे जाती थी लेकिन अब यह उतनी आम बात नहीं रह गई है। हालांकि पूर्वोत्तर के इलाकों में चिड़िया की स्थिति देश के अन्य भागों के बनिस्पत कुछ अच्छी है।
चिड़ियों के कम होने का निष्कर्ष देशभर से बर्ड-वॉचर्स की ओर से जमा हुई 8000 रिपोर्ट्स के आधार पर निकाला गया है। बीएनएचएस के डायरेक्टर असद रहमानी के मुताबिक चिड़ियों की तादाद कम होने के पीछे पाए गए कारणों में से एक बड़ा कारण खेतों में पेस्टीसाइड दवाओं का छिड़काव है। इन कैमिकल्स ने छोटे कीड़े-मकोड़ों का सफाया कर दिया है। ये चिड़ियों का भोजन थे। खाने के अभाव में ये खत्म हो गईं।
दूसरा बड़ा कारण आधुनिक आर्किटेक्चर है जिसमें कांच से बंद खिड़कियां हैं जो चिड़ियों को घोंसला बनाने का मौका नहीं देतीं। पूर्वोत्तर में कई तरह की चिड़ियां बची हुई हैं क्योंकि वहां आज भी प्राकृतिक ग्रामीण माहौल है तथा इमारतें भी पुराने स्टाइल की हैं।