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अन्ना की सुनी तो शर्मिला की क्यों नहीं!

इम्फाल। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और मणिपुर की इरोम शर्मिला चानू के बीच एक समानता है। अपनी बात मनवाने के लिए दोनों अनिश्चितकाल तक अनशन कर सकते हैं। लेकिन यह समानता यहीं खत्म हो जाती है।

टेलीविजन चैनलों की चकाचौंध और माइक्रोफोन से दूर शर्मिला पिछले 11 साल से राजनीतिक उपवास पर है। लेकिन उनकी मांग आज तक पूरी नहीं हुई है। “आयरन लेडी ऑफ मणिपुर” के नाम से जाने जानी वाली शर्मिला का अनशन तुड़वाने के लिए सरकार ने उसकी नाक में स्टील की रोड डाल रखी है।

गौरतलब है कि शर्मिला ने जंतर-मंतर पर पोट्रेट की एक श्रंखला के जरिये भारत सरकार से राज्य में आम्र्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (अफ्सा) 1958 को हटाने की मांग की थी। इस मांग को पूरा करवाने के लिए वे चार नवंबर, 2000 से अनशन पर हैं। लेकिन उनके पास अपने समर्थन में हजारे की तरह न तो पूरे देश का सहयोग है और ना ही उनकी आवाज को सरकार तक रोज पहुंचाने वाले मीडिया के नुमाइंदे।

हालांकि 2004 में केंद्र सरकार ने मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी. पी. जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी बनाई थी। कमेटी ने सरकार को एक्ट में बदलाव करने या एक्ट को मानव एक्ट से बदलने का सुझाव दिया था। लेकिन 6 जून, 2005 को कमेटी द्वारा सौंपी गई सिफारिशों के बाद भी सरकार किसी ठोस नतीज पर नहीं पहुंच सकी।

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