इस समस्या को जमीन पर सुलझायें
बीते दस साल पर्यावरण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहे। इन सालों में पर्यावरण को हो रहे नुकसान और संरक्षण को लेकर कई अवाजें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच से उठीं। जिनसे उन लोगों में एक नई उम्मीद जगी जो प्रकृ ति और उसके दर्द को महसूस करते हैं या करते आये हैं। आज की तारीख में हर कोई चाहे वो बच्चा हो या बूढ़ा इनवायरमेंटल प्रॉब्लम्स से वाकिफ है । इसके सबसे ज्यादा प्रशंसा का हकदार है हमारा मीडिया जिसने धीरे धीरे ही सही पर्यावरण से जुड़ी खबरों को तव्वजो देना शुरू किया जिसके कारण समाज का हर तबका पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहा है।
हालांकि अभी भी कुछ कमियां हैं जिनका दूर होना जरूरी है । मसलन पूरी तरह से आज भी जल,जंगल और वन्यजीवों से जुड़ी खबरों को सही ट्रीटमेंट न तो न्यूजपेपर्स में ही मिल पाता है और न ही न्यूज चैनल्स में। इनसे जुड़े मामले तभी सामने आते हैं जब कोई बड़ी घटना हो जाये। इसके अलावा आज भी इनवायरवेंट एंड वाइल्ड लाइफ के इश्यूज़ को आम लोगों से न जोड़ कर बड़े लोगों के शौक या ज्यादा माना जाता है। जिससे आम आदमी की भागीदारी इस मामले कहीं कहीं पर तो एक फीसदी भी नही है।
एनजीओ के दखल का दायरा भी काफी बढ़ा है। हर कोई वाइल्ड लाइफ कंजरवेशन के नाम पर अपनी दुकान खोले बैठा है। कई जगह तो एनजीओं का इतना ज्यादा दखल है कि सरकारी मशीनरी भी इनके इशारों पर नाचती है। ये एनजीओ या तो अमीर लोगों के द्वारा चलाये जाते हैं या फिर उनका इसमें पैसा लगा होता है। फील्ड वर्क और रिसर्च के नाम पर ये अलग अलग अभ्यारणों में डेरा डाले रहते हैं और बदले में कुछ पन्नों की रिपोर्ट बना देते हैं। वो भी फाइव स्टार होटलों में बैठ कर फिर इन रिपोर्टों को सेमिनारों – कॉंफ्रेंसो में प्रेजेंट किया जाता है और विदेशी संस्थाओं से मोटी रकम कंजरवेशन फंड या ग्रांट के तौर पर वसूली जाती है।
यहां पर मैं कॉर्बेट नेशनल पार्क का जिक्र जरूर करना चाहूंगा, जिसे दुनिया के सबसे प्रीमियर नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया है, लेकिन आपको जानकर ताजुब्ब होगा कि बीते 10 साल से पहले इसे कोई पूछता नही था। लेकिन आज एक आम टूरिस्ट की तरह आप कॉर्बेट जाना चाहें तो एड़ी चोटी का जोर लगा कर भी परमिट मिल सकेगा इसकी कोई गांरटी नही है। 10 साल में इंटरनेट ने जितनी तेजी से अपने पैर पसारे उतनी ही तेजी से कॉर्बेट का नाम टूरिस्टों की हॉट डेस्टिनेशन लिस्टों और ट्रेवल एजेंटो के हॉट इनकम स्पॉट्स में शुमार हो गया। आज ये नेशनल पार्क टूरिस्टों के दबाव में अपना नैर्सगिक वजूद खोता जा रहा है।
पहले यहां सिर्फ प्रकृति प्रेमी आया करते थे लेकिन आज ये पार्क ट्रेवल सिंडीकेट, पॉलिटिकल प्रेशर और एनजीओ सिंडीकेट का गढ़ बन गया है। कंजरवेशन के नाम पर यहां भी रजिस्टर में तो कई संस्थायें रजिस्टर्ड हैं लेकिन धरातल पर ढूंढने पर आपको तीन चार ही मिलेंगी। यहां भी कंजरवेशन के नाम पर गोरखधंधा जोरों पर है और जमीनी स्तर पर काम करने वाले अफसरों और लोगों का टोटा है। कार्बेट पार्क प्रशासन भी इनके आगे नतमस्क ही नजर आता है। लिहाजा अब वक्त का तकाजा तो यही कहता है कि पक्के इरादों के साथ मैदान में उतरिये और आने वाली पीढ़ी के लिये प्रकृति और उसके बेशकीमती रत्नों को सहेजना शुरू करें बिना किसी स्वार्थ और निजी लालच के ।
नीरज उपाध्याय