Skip to content

क्यों बंद हुई चीनी भाषा की शिक्षा

chamoli-border-areaलगभग तीन साल पहले फौज ने अपने जवानों को चीनी तथा तिब्बती भाषाएँ सिखाने कक्षाएँ शुरू की थीं, जो अब एकाएक बन्द कर दी गई हैं। चमोली जनपद की विवादित भूमि ‘बड़ा होती’ में गर्मियों तथा बरसात में तिब्बती चरवाहे अपने याक चराने आते हैं और कभी-कभी चीनी सैनिक गश्त लगाने पहुँच जाया करते हैं। इस विस्तृत चरागाह के एक छोर पर भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस की एक चौकी रिमखिम पहाड़ी पर स्थित है, जिसमें यदा-कदा कुछ सैनिक भी पहरे के लिए जाते हैं। इस क्षेत्र की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सेना की एक स्वाधीन ब्रिगेड पर है, जिसका मुख्यालय जोशीमठ है। जब चीनी सैनिक उस क्षेत्र, जिसे हम अपना मानते हैं, में आते हैं तो भाषा न जानने के कारण हमारे रक्षकों का उनसे वार्तालाप करना संभव नहीं हो पाता। चीनी सैनिक हिंदी नहीं जानते हैं। वे अपनी भाषा में जो कुछ बोलते हैं उसे भारतीय सैनिक नहीं समझ पाते। भारतीय रक्षकों के पास एक बडे पट पर चीनी में लिखा होता है, यह भारत की भूमि है। आप लोग वापस चले जाइए! थोड़ा गश्त करने के बाद वे वापस चले जाते हैं। वे क्यों और कहाँ से आए हैं, यह जानना भाषा न आने के कारण संभव नहीं हो पाता। तीन साल पहले जवानों को चीनी भाषा सिखाने जोशीमठ में तथा तिब्बती भाषा सिखाने धारचूला में कक्षाएँ खोली गईं। पिछले तीन साल की पढाई के बाद 11 सैनिक चीनी भाषा बोलने तथा पढ़ने में समर्थ हो गए। इस साल तय हुआ कि एक के बजाय चीनी भाषा की दो कक्षाएँ जोशीमठ में चलाई जाएँगी, जिसके लिए कुछ और सैनिक चुन कर लाए गए।
फिर चार माह बाद, अप्रेल के तीसरे सप्ताह में अचानक फरमान आ गया कि चीनी भाषा की कक्षाएँ अब समाप्त की जा रही हैं। सुना गया कि सेना का उत्तरी कमांड संभवतः लखनऊ या बरेली में ये कक्षाएँ चलायेगा। सेना का विदेशी भाषाएँ, खास तौर पर चीनी, सिखाने के लिये एक विद्यालय पंचमढ़ी में है। संभवतः सेना वहाँ से शिक्षकों को लाकर उत्तरी भारत में चीनी सिखाए।
लेकिन जिसे हम अपनी सरहद कहते हैं, उसमें चीनियों के घुस आने की समस्या केवल चमोली जिले के भूभाग की है। लखनऊ या बरेली से इस सरहद तक पहुँचने में काफी समय लग जाता है, हेलीकॉप्टर से भी तीन घंटे से अधिक।
चीनी सिपाहियों के हमारी सीमा के आने का कोई समय नियत नहीं रहता। कहा नहीं जा सकता कि वे कब आयेंगे और कितना समय वहाँ रहेंगे। वे कुछ घंटे या अधिक से अधिक पूरा दिन भर घूम कर वापस चले जाते हैं। हर सप्ताह, माह या दो-तीन महीने में उनके आने की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती। यदि ‘बड़ा होती’ सरहदी क्षेत्र या उसके आसपास चीनी भाषा जानने वाले हमारे सैनिक तैनात हों तभी यह संभव है कि जब चीनी सैनिक आएँ तो उन्हें घेर कर उनसे पूछताछ या बातचीत कर सकें और उनके आने का मकसद जान सकें।
कंटेंट कर्टसी – नैनीताल समाचार – हरीश चन्द्र चंदोला

Leave a Comment

Your email address will not be published.

*
*